हज़रत आयशा (र) बयान करती हैं। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : रमज़ान के आख़िरी दशक की ताक़ रातों में शबे-क़द्र तलाश करो। बुख़ारी
Mishkat 2083
हज़रत इब्ने-उमर (र) बयान करते हैं कि नबी (ﷺ) के कुछ सहाबा को शबे-क़द्र हालते-ख़्वाब में रमज़ान के आख़िरी हफ़्ते में दिखाई गई तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : में देखता हूँ कि तुम्हारे ख़्वाब आख़िरी हफ़्ते में मुत्तफ़िक़ और मुवाफ़िक़ हैं। इसलिये जो शख़्स उसे तलाश करना चाहे तो वो उसे आख़िरी हफ़्ते में तलाश करे। (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 2084
हज़रत इब्ने-अब्बास (र) से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़रमाया : इस (शबे-क़द्र) को रमज़ान के आख़िरी दशक में तलाश करो शबे-क़द्र बाक़ी रहने वाली नौवीं रात, सातवीं रात, पाँचवीं रात (यानी इक्कीसवीं तेईसवीं और पच्चीसवीं रात) में है। बुख़ारी
Mishkat 2085
हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (र) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान के पहले दशक में ऐतिकाफ़ किया फिर आप ने बीच दशक में एक छोटे से ख़ेमे में ऐतिकाफ़ किया फिर आप ने अपना सिर बाहर निकाल कर फ़रमाया : मैंने पहला अशरा ऐतिकाफ़ किया में इस रात को तलाश करना चाहता था, फिर मैंने बीच के अशारे का ऐतिकाफ़ किया फिर मेरे पास फ़रिश्ता आया तो मुझे कहा गया कि वो आख़िरी अशरे में है। जो शख़्स मेरे साथ ऐतिकाफ़ करना चाहे तो वो आख़िरी अशरा ऐतिकाफ़ करे मुझे ये रात दिखाई गई थी। फिर मुझे भुला दी गई मैंने उसकी सुबह ख़ुद को कीचड़ में सजदा करते हुए देखा है। उसे आख़िरी अशरे में तलाश करो और उसे हर ताक़ रात में तलाश करो। रावी बयान करते हैं कि इस रात बारिश हुई मस्जिद की छत शाख़ों से बनी हुई थी। वो टपकने लगी मेरी आँखों ने रसूलुल्लाह ﷺ को देखा कि आप की पेशानी पर कीचड़ का निशान था और ये इक्कीसवीं की रात (यानी इक्कीसवीं तारीख़) थी। (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 2086
हज़रत ज़र-बिन-हबीश बयान करते हैं कि मैंने उबई-बिन-कअब (र) से पूछा : आप के भाई इब्ने-मसऊद (र) फ़रमाते हैं कि जो शख़्स पूरा साल तहज्जुद पढ़ेगा वो शबे-क़द्र पा लेगा तो उन्होंने फ़रमाया : अल्लाह उसपर रहम फ़रमाए उन्होंने ये इरादा किया कि लोग इसपर ही भरोसा न कर लें हालाँकि उन्हें मालूम है कि वो (शबे-क़द्र) रमज़ान में है और आख़िरी अशरे में है और वो सत्ताइसवीं रात है। फिर उन्होंने इंशाअल्लाह कहे बग़ैर क़सम उठा कर कहा वो सत्ताइसवीं रात है। मैंने कहा : अबू-मुन्ज़िर ! आप ये कैसे कहते हैं? उन्होंने फ़रमाया : इसकी अलामत या निशानी की बिना पर जो रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें बताई थी कि उस दिन सूरज निकलेगा तो उसकी किरणें नहीं होंगी। (मुस्लिम)
Mishkat 2088
हज़रत अबू-बकरह (र) बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को फ़रमाते हुए सुना : शबे-क़द्र को इक्कीसवीं या तेईसवीं या पच्चीसवीं या सत्ताइसवीं या उन्तीसवीं रात में तलाश करो। तिरमिज़ी
Mishkat 2092
हज़रत उबादा-बिन-सामित (र) बयान करते हैं कि नबी (ﷺ) शबे-क़द्र के मुताल्लिक़ हमें बताने के लिये तशरीफ़ लाए तो दो मुसलमान आपस में झगड़ रहे थे। आप ﷺ ने फ़रमाया : में तुम्हें शबे-क़द्र के मुताल्लिक़ बताने के लिये आया था लेकिन फ़ुलाँ और फ़ुलाँ आपस में झगड़ पड़े तो वो मुझ से उठा ली गई और मुमकिन है कि तुम्हारे लिये बेहतर हो इसलिये तुम उसे इक्कीसवीं तेईसवीं और पच्चीसवीं रात में तलाश करो। बुख़ारी
Mishkat 2095
ज़िर्र-इब्ने-हजीश कहते हैं कि मैंने हज़रत उबई-बिन-कअब (र) से कहा : ऐ अबुल-मुन्ज़िर ! मुझे शबे-क़द्र के बारे में बताइये क्योंकि हमारे साहिब (हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (र)) से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा : जो शख़्स पूरे साल क़ियाम करता रहे वो उसेपा लेगा। तो उन्होंने कहा : अल्लाह अबू-अब्दुर्रहमान (यानी इब्ने-मसऊद (र)) पर रहम फ़रमाए अल्लाह की क़सम ! उन्हें ख़ूब मालूम है कि ये रमज़ान में होती है। (मुसद्दद ने बढ़ोतरी की) लेकिन उन्होंने ना पसन्द किया कि लोग (सिर्फ़ रमज़ान ही पर) तकिया कर लें या उन्होंने चाहा है कि लोग उसी पर तकिया न कर लें। (फिर सुलैमान और मुसद्दद दोनों ने कहा 🙂 क़सम अल्लाह की! ये रमज़ान की सत्ताइसवीं रात को होती है इंशाअल्लाह न कहा : मैंने कहा : ऐ अबुल-मुन्ज़िर ! आपको इसका कैसे इल्म हुआ? उन्होंने कहा : उस अलामत से जो रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें बताई है। (आसिम ने कहा) मैंने जनाब ज़िर से पूछा : वो अलामत क्या है? उन्होंने कहा : उस रात की सुबह को सूरज थाल (तांबे की बड़ी प्लेट) की तरह निकलता है और ऊँचा होने तक उसमें किरण (और गर्मी ) नहीं होती।
Sunan Abu Dawood 1378
मुझसे मेरे बाप ने बयान किया कि अबू-बकरह (र) के पास शबे-क़द्र का ज़िक्र किया गया तो उन्होंने कहा : जिस चीज़ की वजह से मैं उसे सिर्फ़ आख़िरी दहाई ही में तलाश करता हूँ वो ये है कि मैं ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से एक बात सुनी है। मैं ने आप को फ़रमाते सुना है : तलाश करो जब महीना पूरा होने में नौ दिन बाक़ी रह जाएँ या जब सात दिन बाक़ी रह जाएँ या जब पाँच दिन रह जाएँ या जब तीन दिन रह जाएँ; अबू-बकरह (र) रमज़ान के बीस दिन नमाज़ पढ़ते थे जैसे पूरे साल पढ़ते थे लेकिन जब आख़िरी दस दिन आते तो इबादत में ख़ूब मेहनत करते।
इमाम तिरमिज़ी कहते हैं : ये हदीस हसन सही है।
Sunan Tirmizi 794
ज़मरा-बिन-अब्दुल्लाह-बिन-अनीस अपने वालिद से रिवायत करते हैं उन्होंने कहा कि मैं बनी सलमा की एक मजलिस में था और मैं उन सबसे छोटा था उन्होंने कहा : कौन है जो रसूलुल्लाह ﷺ से हमारे लिये शबे-क़द्र के बारे में पूछ आए ? और ये रमज़ान की इक्कीसवीं तारीख़ की सुबह थी। इसलिये मैं निकला और मग़रिब की नमाज़ रसूलुल्लाह ﷺ के साथ पढ़ी। फिर मैं आपके घर के दरवाज़े पर खड़ा हो गया। आप मेरे पास से गुज़रे तो फ़रमाया : अन्दर आ जाओ। मैं अन्दर चला गया आपको खाना पेश किया गया। मुझे याद है कि मैं खाना कम होने की वजह से झिझक रहा था (यानी बहुत कम खा रहा था।) जब फ़ारिग़ हो गए तो फ़रमाया : मुझे मेरे जूते दो। चुनांचे आप खड़े हो गए और मैं भी आपके साथ उठ खड़ा हुआ। आपने फ़रमाया : शायद तुम किसी काम से आए थे? मैंने कहा : हाँ! बनी सलमा की एक जमाअत ने मुझे आपकी ख़िदमत में भेजा है वो लोग शबे-क़द्र के बारे में दरयाफ़्त करना चाहते हैं। आपने फ़रमाया : आज कौन-सी रात है? मैंने कहा : आज बाईसवीं है। आपने फ़रमाया : यही रात है। फिर आपने अपनी बात दोहराई और फ़रमाया : अगली रात है यानी तेईसवीं रात।
Sunan Abu Dawood 1379
हज़रत इब्ने-अब्बास (र) नबी ﷺ से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया : शबे-क़द्र को रमज़ान की आख़िरी दस (रातों) में तलाश करो, आख़िरी नौवीं सातवें और पाँचवीं रात में।
Sunan Abu Dawood 1381
हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ रमज़ान के दरमियानी दशक में ऐतिकाफ़ किया करते थे। आपने एक साल ऐतिकाफ़ किया यहाँ तक कि जब इक्कीसवीं रात आ गई और आप इस रात को अपने ऐतिकाफ़ से निकल आया करते थे तो आपने फ़रमाया : जिसने मेरे साथ ऐतिकाफ़ किया है तो वो आख़िरी दस ऐतिकाफ़ करे। मैंने उस रात (शबे-क़द्र) को देखा है मगर भुलवा दिया गया हूँ, और मैंने अपने आपको देखा है कि उसकी सुबह को पानी और मिट्टी (कीचड़) में सजदा कर रहा हूँ। चुनांचे तुम उसे आख़िरी दशक में तलाश करो और उसे हर ताक़ रात में तलाश करो। हज़रत अबू-सईद (र) फ़रमाते हैं : चुनांचे उसी रात बारिश हो गई और मस्जिद की छत जो छड़ियों की बनी हुई (छप्पर) थी टपक पड़ी। मेरी आँखों ने देखा कि रसूलुल्लाह ﷺ की पेशानी और नाक पर पानी और मिट्टी (कीचड़) का निशान था और ये इक्कीसवीं रात की सुबह थी।
Sunan Abu Dawood 1382
हज़रत इब्ने-उमर (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : आख़िरी सात रातों में शबे-क़द्र तलाश करो।