हज़रत अबू-हुरैरा (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जिस शख़्स को रोज़े की हालत में क़ै (उल्टी)आ जाए तो उसपर कोई क़ज़ा नहीं और जो शख़्स जान-बूझकर क़ै करे तो वो (रोज़ा की) क़ज़ा करे। तिरमिज़ी अबू-दाऊद इब्ने-माजा दारमी और इमाम तिरमिज़ी ने फ़रमाया : ये हदीस ग़रीब है। हम ईसा-बिन-यूनुस से रिवायत हुई हदीस के हवाले से ही उसे जानते हैं। जबकि मुहम्मद यानी इमाम बुख़ारी ने फ़रमाया : में उसे महफ़ूज़ नहीं समझता।
Mishkat 2007*
(*यह हदीस जईफुल असनाद है।)