इस्लाम में दो ईद (ईद-उल-फितर और ईद-उल-अदहा) के दिन रोज़ा रखना मना किया गया है।
हदीस में आता है: हज़रत अबू सईद अल-खुदरी (रज़ि.) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया: “कोई भी व्यक्ति ईद-उल-फितर और ईद-उल-अदहा के दिन रोज़ा न रखे।” (सहिह बुखारी: 1990, सहिह मुस्लिम: 1137)
शव्वाल के छह रोज़े रखने की फ़ज़ीलत
शव्वाल का महीना रमज़ान के बाद आता है। इसमें छह रोज़े रखना बहुत बड़ा सवाब वाला अमल है। यह छह रोजे रखना मतलब साल भर के रोजे रखने का सवाब हासिल होता है।
हदीस में आता है: हज़रत अबू अय्यूब अंसारी (रज़ि.) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया: “जो व्यक्ति रमज़ान के रोज़े रखे और फिर शव्वाल के छह रोज़े भी रखे, तो उसके लिए पूरे साल के रोज़ों का सवाब लिखा जाता है।” (सहिह मुस्लिम: 1164)
शव्वाल के रोज़े रखने का तरीका
ये छह रोज़े एक साथ या अलग-अलग रखे जा सकते हैं।
सबसे पहले रमज़ान के क़ज़ा रोज़े पूरे करना बेहतर है, अगर कुछ बीमारी या सफर या कोई शरई उजर से रोजे छूटे हों तो पहले वो क़ज़ा करले फिर शव्वाल के नफ़्ली रोज़े रखना चाहिए।
इन रोज़ों को शव्वाल के पूरे महीने में कभी भी रखा जा सकता है, यह जरूरी नहीं कि लगातार रखे जाएं।
शव्वाल के छह रोज़ों का पूरे साल के रोजे के बराबर सवाब क्यों?
इस्लाम में एक नेक अमल का दस गुना सवाब मिलता है।
रमज़ान के 30 रोज़े × 10 = 300 दिन का सवाब।
शव्वाल के 6 रोज़े × 10 = 60 दिन का सवाब।
इस तरह यह पूरे साल के 360 दिनों के बराबर हो जाता है।
हदीस से साबित होने वाले फायदे
1. रमज़ान के बाद शव्वाल के छह रोज़े रखने से पूरे साल रोज़े रखने का सवाब मिलता है।
2. यह रोज़े इंसान के गुनाहों का कफ्फारा बनते हैं।
3. यह रोज़े अल्लाह की कुर्बत और तक़्वा में बढ़ोतरी का जरिया हैं।
4. यह आदत इंसान को पूरे साल नफ्ली रोज़े रखने के लिए तरगिब दिलाती है।
5. अगर यह छह रोजे न रख पाएं तो हर महीने अय्यामे बीज के तीन रोजे रख ने से भी पूरा साल के रोजे रखने के बराबर सवाब हासिल हो सकता हे। शर्त यह है कि हर महीने 13,14,15 के रोजे रखें जाए। तीन रोजे और 10 गुना नेकी यानी 30 दिन (महीना) के रोजे का सवाब।
अल्लाह हमें इस हदीस पर अमल करने की तौफीक़ दे, रमजान की बरकतों को नेक अमल के ज़रिए बरकरार रखने की तौफीक दे, आमीन!