हज़रत आयशा (र) बयान करती हैं। रसूलुल्लाह ﷺ जिस क़द्र आख़िरी अशरे में (इबादत और सख़ावत करने की) कोशिश करते थे। वो उसके अलावा किसी और वक़्त नहीं करते थे। (मुस्लिम)
Mishkat 2089
हज़रत आयशा (र) बयान करती हैं। जब आख़िरी अशरा शुरू हो जाता तो रसूलुल्लाह ﷺ (इबादत के लिये) कमर बस्ता हो जाते। शब-दारी फ़रमाते और अपने अहले-ख़ाना (घर वालों) को भी बेदार रखते थे। (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 2090
मसरूक़ से रिवायत है कि उम्मुल-मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा (र) कहती हैं : कि रसूलुल्लाह ﷺ की आदत मुबारका थी कि जब रमज़ान का आख़िरी अशरा आता तो आप ﷺ रात भर जागते और घर वालों को भी जगाते, (इबादत में) बहुत ही कोशिश करते और कमर हिम्मत बाँध लेते थे।
Sahih Muslim 2787
हसन-बिन-उबैदुल्लाह से रिवायत है, कहा : मैंने इब्राहीम नख़ई से सुना, कह रहे थे : मैंने असवद-बिन-यज़ीद से सुना, वो कह रहे थे कि हज़रत आयशा (र) ने फ़रमाया : रसूलुल्लाह ﷺ (रमज़ान के) आख़िरी दस दिन (इबादत) में इस क़द्र मेहनत करते जितनी आम दिनों में नहीं करते थे। (और आम दिनों में भी आप ﷺ बहुत ज़्यादा मेहनत करते थे।)