हज़रत आयशा (र) से रिवायत है कि नबी (ﷺ) रमज़ान के आख़िरी अशरे में ऐतिकाफ़ करते रहे यहाँ तक कि अल्लाह ने उन्हें वफ़ात दे दी। फिर आप की वफ़ात के बाद पाक बीवियों ने ऐतिकाफ़ किया। (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 2097
हज़रत अबू-हुरैरा (र) बयान करते हैं कि नबी (ﷺ) को हर साल एक मर्तबा क़ुरआन सुनाया जाता था और जिस साल आप की जान क़ब्ज़ की गई इस साल दो मर्तबा सुनाया गया और आप हर साल दस दिन ऐतिकाफ़ किया करते थे। लेकिन जिस साल आप की जान क़ब्ज़ की गई इस साल आप ने बीस दिन ऐतिकाफ़ फ़रमाया : बुख़ारी
Mishkat 2099
हज़रत आयशा (र) बयान करती हैं। जब रसूलुल्लाह ﷺ ऐतिकाफ़ फ़रमाया करते तो आप अपना सिर मुबारक मेरे क़रीब कर देते जबकि आप मस्जिद में होते थे। में आप के कंघी कर देती और आप सिर्फ़ इन्सानी ज़रूरत के तहत ही घर में तशरीफ़ लाया करते थे। (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 2100
हज़रत अनस (र) बयान करते हैं कि नबी (ﷺ) रमज़ान के आख़िरी दस दिन में ऐतिकाफ़ किया करते थे। लेकिन आप ने एक साल ऐतिकाफ़ न किया तो फिर आइन्दा साल आप ने बीस दिन का ऐतिकाफ़ किया। तिरमिज़ी
Mishkat 2102
हज़रत आयशा (र) बयान करती हैं। जब रसूलुल्लाह ﷺ ऐतिकाफ़ करने का इरादा फ़रमाते तो आप ﷺ फ़ज्र की नमाज़ अदा करते और फिर अपने ऐतिकाफ़ की जगह में तशरीफ़ ले जाते। अबू-दाऊद और इब्ने-माजा
Mishkat 2104
हज़रत इब्ने-अब्बास (र) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने ऐतिकाफ़ करने वाले के बारे में फ़रमाया : वो गुनाहों से रुका रहता है और तमाम नेकियाँ करने वाले की तरह उसे नेकियों का सवाब मिलता रहता है। (जिन को वो पहले किया करता था)
Mishkat 2108*
(*यह हदीस जईफुल असनाद है।)