हज़रत मुआज़ा अदविया (र) से रिवायत है कि उन्होंने आयशा (र) से कहा : हायज़ा का क्या मामला है कि वो रोज़े की क़ज़ा देती है और नमाज़ की क़ज़ा नहीं देती? आयशा (र) ने फ़रमाया : हम भी उससे दो चार होती थीं तो हमें रोज़े की क़ज़ा का हुक्म दिया जाता था जबकि नमाज़ की क़ज़ा का हुक्म नहीं दिया जाता था। (मुस्लिम)
Mishkat 2032
हजरत आयशा र से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) के ज़माने में हमें हैज़ आता फिर हम पाक हो जाते तो आप हमें रोज़े क़ज़ा करने का हुक्म देते और नमाज़ क़ज़ा करने का हुक्म नहीं देते।इमाम तिरमिज़ी कहते हैं : ये हदीस हसन है। ये मुआज़ा से भी रिवायत हुई है। उन्होंने आयशा से रिवायत की है और इसी पर आलिमों का अमल है। हम उन के बीच इस बात में कोई इख़्तिलाफ़ नहीं जानते कि हायज़ा औरत रोज़े की क़ज़ा करेगी नमाज़ की नहीं करेगी।