हज़रत अनस (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब शबे-क़द्र होती है, तो जिब्रील (अ) फ़रिश्तों की जमाअत में तशरीफ़ लाते हैं। तो वो शानवाले अल्लाह के ज़िक्र में मसरूफ़ हर खड़े बैठे शख़्स पर रहमत भेजते हैं। जब उनकी ईद का दिन होता है, तो अल्लाह तआला उन की वजह से अपने फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करते हुए फ़रमाता है : मेरे फ़रिश्तो! उस मज़दूर की मज़दूरी क्या होनी चाहिये जो अपना काम पूरा करता है? वो कहा करते। परवरदिगार! उसकी मज़दूरी ये है कि उसे पूरा-पूरा बदला दिया जाए अल्लाह तआला फ़रमाता है : मेरे फ़रिश्तो ! मेरे बन्दो और मेरी बंदियों ने मेरी तरफ़ से उन पर आइद फ़रीज़े को पूरा कर दिया, फिर वो दुआएँ पुकारते हुए निकले हैं। मुझे मेरी इज़्ज़त और जलाल मेरे करम और मेरी इज़्ज़त और अपने बुलन्द मक़ाम की क़सम! मैं उनकी दुआएँ क़बूल करूँगा वो फ़रमाता है : वापस चले जाओ, मैंने तुम्हें बख़्श दिया और तुम्हारी ख़ताओं को नेकियों में बदल दिया आप ﷺ ने फ़रमाया : वो उस हाल में वापस आते हैं कि उन की मग़फ़िरत हो चुकी होती है।
Mishkat 2096*
(*यह हदीस जईफुल असनाद है।)