हज़रत अबू-हुरैरा (र) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जो शख़्स किसी रुख़सत (छूट) (सफ़र वग़ैरा) और मर्ज़ के बग़ैर रमज़ान का एक रोज़ा छोड़ दे तो फिर अगर वो पूरी ज़िन्दगी रोज़े रखता रहे तो वो उस एक दिन के रोज़े के अज्र और सवाब को नहीं पा सकता।
अहमद तिरमिज़ी अबू-दाऊद इब्ने-माजा दारमी और इमाम बुख़ारी ने (तर्जमा बाब) में रिवायत किया है और इमाम तिरमिज़ी ने फ़रमाया : मैंने मुहम्मद यानी इमाम बुख़ारी (रह०) को फ़रमाते हुए सुना : में अबुल-मुतव्विस रावी को इस हदीस के अलावा नहीं जानता कि उसने कोई और हदीस भी रिवायत की हो।
Mishkat 2013*
(*यह हदीस जईफुल असनाद है।)