हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (र) बयान करते हैं कि नबी (ﷺ) ईदुल-फ़ित्र और ईदुल-अज़हा के लिये ईदगाह तशरीफ़ ले जाते (मुत्तफ़क़ अलैह)
Mishkat 1426
हज़रत अबू-हुरैरा (र) से रिवायत है कि ईद के दिन बारिश हो गई तो नबी (ﷺ) ने उन्हें नमाज़े-ईद मस्जिद में पढ़ाई।
Mishkat 1448*
(*यह हदीस जईफुल असनाद है।)
ईद की नमाज मस्जिद में भी अदा हो जाएगी लेकिन सुन्नत यह है की ईदगाह में अदा की जाए। बड़ी मेट्रो सिटी में लाखों लोगों का एक ईदगाह में नमाज पढ़ना मुश्किल है तो कम से कम इलाकों की बड़ी जामा मस्जिद में ही पढ़ ली जाए। महोल्लों की मस्जिद को बुजुर्गों के लिए छोड़ दी जाए ताकि वो भी इत्मीनान से नमाज अदा कर सके। रसूलुल्लाह ﷺ का असल मकसद इजतेमा का था। हफ्ते में एक बार जुमा में खुतबा होता है इसलिए जामा मस्जिदें कायम हुई और साल में दो ईद में पूरे शहर गांव के लिए ईदगाह कायम हुई। आप ﷺ ने सिर्फ बारिश की वजह से ईद की नमाज मस्जिद में पढ़ाई है। तो कोशिश करें ईदगाह में ईद की नमाज अदा करने की और मुमकिन ना हो तो बड़ी जामा मस्जिद में पढ़ने की कोशिश करें। आप ﷺ की सुन्नतों को जिंदा करें।