मासिक धर्म, हैज़ (पीरियड्स) के दौरान छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा
इस्लाम में रमज़ान के रोज़े फर्ज़ हैं, लेकिन महिलाओं को मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान रोज़ा रखने की अनुमति नहीं होती। इस दौरान रोज़ा छोड़ना अनिवार्य होता है, लेकिन इन छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा रमज़ान के बाद करना ज़रूरी है।
हदीस:
हज़रत आयशा (रज़ि.) फ़रमाती हैं: “हम हैज की हालत में होतीं तो हमें रोज़ों की क़ज़ा करने का हुक्म दिया जाता, लेकिन नमाज़ की क़ज़ा करने का नहीं।”
(सहीह मुस्लिम, हदीस: 335)
यह हदीस स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि महिलाएं हैज के कारण नमाज़ की क़ज़ा नहीं करतीं, लेकिन रोज़ों की क़ज़ा करना अनिवार्य है।
क़ज़ा रोज़े रखने का तरीका:
1. गिनती करें: रमज़ान में जितने रोज़े छूटे हैं, उनकी सही संख्या याद रखें।
2. जल्द अदा करें: बेहतर यह है कि रमज़ान के तुरंत बाद या जब भी आसानी हो, इन रोज़ों की क़ज़ा कर लें।
3. नियत करें: क़ज़ा रोज़े की नियत इस तरह करें: “मैं अल्लाह के लिए फर्ज़ रमज़ान के क़ज़ा रोज़े रखने की नियत करती हूँ।”
4. लगातार या अलग-अलग: रोज़ों की क़ज़ा लगातार रखना ज़रूरी नहीं, उन्हें अलग-अलग दिनों में भी रखा जा सकता है।
हदीस:
हज़रत आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से सुना, वह फरमाती हैं: “मेरे ज़िम्मे रमज़ान के रोज़ों की क़ज़ा होती, तो मैं शाबान के अलावा किसी और महीने में यह क़ज़ा रोज़े नहीं रख सकती थी। और इसका कारण अल्लाह के रसूल ﷺ की मौजूदगी या उनके साथ मशरूफियत होती।”
(सहीह बुखारी: 1950, सहीह मुस्लिम: 2687)
सबक:
इस्लाम में महिलाओं के लिए (मासिक धर्म) हैज के दौरान रोज़ा रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना ज़रूरी है। यह अल्लाह का एक रहमत भरा हुक्म है जो महिलाओं की सेहत और उनकी इबादत को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। इसलिए हर महिला को रमज़ान के बाद अपने क़ज़ा रोज़ों को पूरा कर लेना चाहिए ताकि उनका फ़र्ज़ अदा हो जाए।