ज़िंदगी का एक और मुबारक महीना हमसे रुख़्सत हो रहा है। यह वही रमज़ान है जिसमें कुरआन शरीफ नाज़िल हुआ। मगर अफ़सोस, आज उम्मत का एक बड़ा तबक़ा इसे सिर्फ़ तिलावत तक महदूद कर चुका है। न इसका तर्जुमा पढ़ता है, न इसकी तफ़सीर पर ग़ौर करता है। साल के ग्यारह महीने इंसान अपनी दुनिया में उलझा रहता है, और जब रमज़ान आता है, तब भी ज़्यादातर लोग कुरआन को समझने की कोशिश नहीं करते।
शैतान और उसके गिरोह यही चाहता है कि तुम कुरआन की तालीम से दूर रहो, ताकि तुम्हारी ज़िंदगी में कामयाबी न आ सके। आज मुसलमान कुरआन को सिर्फ़ अलमारी में सजाकर रखता है, तिलावत के लिए भी मुश्किल से निकालता है। इस भुलावे के कारण ही उम्मत आज ज़लील और ख्वार हो रही है।
रमज़ान के जाने से पहले एक अहद कर लें कि हम कुरआन को फिर से अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएंगे। इसे सिर्फ़ तिलावत के लिए नहीं, बल्कि समझने और अमल करने के लिए भी पढ़ेंगे। हर दिन कम से कम एक आयत का मतलब और तफ़सीर पढ़ेंगे, ताकि अल्लाह तआला की बताई हुई कामयाबी की राहों को जान सकें।
अल्लाह तआला फरमाता है: “क्या ये लोग कुरआन पर ग़ौर नहीं करते? या फिर इनके दिलों पर ताले लगे हुए हैं?” (सूरह 47: आयत 24)
आइए, अपने दिलों पर लगे ताले खोल दें और कुरआन की रोशनी से अपनी ज़िंदगी को रोशन करें। इस रमज़ान से सबक लेकर आने वाले हर रमज़ान को इससे बेहतर बनाने की कोशिश करें।
अल्लाह हम सबको बार-बार इस मुबारक महीने की नेमतों से नवाज़े और तमाम मुसलमानों की मग़फिरत फरमाए। आमीन।